25 जून, भारत के इतिहास का सबसे ज्यादा चर्चित दिन था। ये वो दिन है जब रातो-रात देश में भूचाल आ गया था। आज की तारीख़ को लोग ब्लैक डे इन इंडियन डेमोक्रेसी यानि भारतीय लोकतंत्र का काला दिन मानते है। आज आपातकाल को 47 वर्ष पूरे हुए है।
दरअसल आज ही के दिन भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के कहने पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा की थी। 25 जून 1975 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 अधीन देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी। 1975 में लगे इस आपातकाल का असर देश की राजनीती के साथ-साथ आम जनमानस पर भी पड़ा। आपातकाल की वजह से पूरे भारत में चुनाव रद्द हो गये। कई नेताओ को जेल में डाला गया। लोगो की जबरदस्ती नसबंदी करायी गयी।
आपको बता दे कि 1971 के लोकसभा चुनाव में ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ इंदिरा गाँधी की अगुवाई में कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत मिली थी। उस समय गाँधी के सामने राज नारायण प्रतिद्वंदी के रूप में खड़े थे। कांग्रेस के ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के बदले में विपक्ष ने ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा दिया था।
इंदिरा गाँधी के चुनाव लड़ने पर कोर्ट ने लगाई थी 6 वर्ष की रोक
इंदिरा गाँधी के चुनाव जीतने पर कई लोगों ने आरोप लगाया कि उन्होने गलत तरीके से चुनाव जीता हैं। आरोप लगे कि इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों से अपनी रैलियों के तंबू गड़वाए थे और उनसे प्रचार-प्रसार करवाया था। उनके चुनाव को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द करते हुए अगले 6 वर्ष तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहाँ भी उनकी बात ना बनी। 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया।
इंदिरा गांधी को एक सांसद के तौर पर मिलने वाले सभी विशेषाधिकार पर रोक लगा दी गयी और उन्हें मतदान से भी वंचित कर दिया था। लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर बने रहने की छूट दी गई थी। ऐसा कहा जाता हैं कि उस समय इंदिरा गाँधी इस्तीफा देने को तैयार थी। लेकिन बेटे संजय गाँधी के कहने पर उन्होने इस्तीफा नहीं दिया। संजय ने कहा अगर आप इस्तिफा दे देंगी, तो विपक्ष आपको किसी ना किसी बहाने जेल में डाल देगा।
1975 में क्यों लगा था आपातकाल?
कहा जाता हैं, कि इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी अपना-अपना फैसला सुना चुके थे। जिसके बाद पूरे देश में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में प्रदर्शन शुरू हो चुका था। इधर इंदिरा गाँधी के बेटे संजय गांधी ने भी प्रधानमंत्री के तत्कालीन सचिव आरके धवन के साथ मिलकर बसों में भरकर इंदिरा गांधी के समर्थन में रैलियां करवाना शुरू कर दिया। लेकिन उनपर जेपी का आंदोलन भारी पड़ गया था।
25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जय प्रकाश एक बड़ी रैली करने वाले थे। जिसको लेकर आईबी को विद्रोह की खबर मिली थी। इस विद्रोह की खबर के बाद इंदिरा गांधी ने कैबिनेट में चर्चा किए बिना देश में आपातकाल की घोषणा कर दी, और उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आधी रात को ही इमरजेंसी लगाने के पेपर पर दस्तखत कर दिया था।
आपातकाल में जेपी की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया। पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया। सरकार विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी समेत विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया।
आपातकाल हटने के बाद 1977 के चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार
आपातकाल हटने के बाद जब देश में चुनाव हुआ, तब इंदिरा गांधी व कांग्रेस को करारी हार मिली। जनता दल सहित विपक्षी पार्टियों को जबरदस्त सफलता मिली थी। उन्होंने लोकसभा की 298 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि कांग्रेस 154 सीटों ही मिली थी। इंदिरा गांधी को स्वयं भी रायबरेली सीट से राज नारायण के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस को बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारत के कई राज्यों में एक भी सीट नहीं मिली थी।