श्रीलंका में इन दिनों अर्थिक संकट के चलते सरकार के खिलाफ विरोध प्रर्दशन हो रहा है.बढ़ती महगाई के चलते वहां के लोगों को खाने-पीने के समान के लिए अधिक पैसे देने पड़ रहे है,इसके बाद भी खाद समाग्री नहीं मिल पा रही है.वहीं सरकार कर्ज में डूबी हुई है.1948 में ब्रिटेन से आज़ादी के बाद यह श्रीलंका का सबसे गंभीर आर्थिक संकट माना जा रहा है. बता दें कि पिछले 15 सालों से,भारत और चीन दोनों श्रीलंका को अपने कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों में अधिक रुचि देते आए हैं. इसका कारण है हिंद महासागर में श्रीलंका की भोगौलिक स्थिति,जो रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है.श्रीलंका के साथ बेहतर संबंध व्यापार के अलावा समुद्री सीमा में सामरिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है.
बीते सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को अपने समर्थकों और शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच भड़की हिंसा के बाद इस्तीफ़ा देना पड़ा था.उनके बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि स्थिति बेहतर होने से पहले और ज़्यादा ख़राब होंगी. उन्होंने भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों से वित्तीय मदद भी मांगी है.भारत ने 1.9 अरब डॉलर की मदद देने का वादा किया है और माना जा रहा है कि भारत 1.5 अरब डॉलर की अतिरिक्त मदद भी करेगा.
इसके अलावा भारत सरकार ने श्रीलंका को 65 हज़ार टन खाद और चार लाख टन ईंधन भेजा है और भी ईंधन भेजे जाने की संभावना है. इसके साथ ही श्रीलंका को मेडिकल सहायता भेजने का भी भारत ने भरोसा दिलाया है. श्रीलंका में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत पूरी कोशिश कर रहा है. शी जिनपिंग के श्रीलंका दौरे के बाद अगले ही साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल श्रीलंका का दौरा किया बल्कि श्रीलंकाई संसद में बोलते हुए दावा किया कि भारत और श्रीलंका आपस में सबसे अच्छे दोस्त हैं.