पूरे देश में जहां भी राजद्रोह के मुक़दमे चल रहे हैं उस पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है. इस फ़ैसले को दो तरह से देखा जा रहा है. एक ये कि सरकार या पुलिस के पास किसी भी नागरिक को परेशान करने के लिए धाराएँ मौजूद हैं. और दूसरा कोर्ट के इस अंतरिम रोक से ये साबित हो जा रहा है कि सरकार और पुलिस लोगों को परेशान करने के लिए इस तरह के क़ानून का इस्तेमाल करती है. आज के दौर में समाज के हितों के लिए लड़ने वाले समाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ इस क़ानून का प्रयोग किया जा रहा है.
जिनपर राजद्रोह के केस चल रहे हैं, उनका क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राजद्रोह कानून की धारा 124ए पर पुनर्विचार के लिए समय दे दिया है. जब तक पुनर्विचार की ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक इस धारा के तहत कोई केस दर्ज नहीं होगा. यहां तक कि धारा 124ए के तहत किसी मामले की जांच भी नहीं होगी. कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों पर इस धारा में केस दर्ज हैं और वो जेल में हैं वो भी राहत और जमानत के लिए कोर्ट जा सकते हैं. 152 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब राजद्रोह के प्रावधान के संचालन पर रोक लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान जब जजों ने पूछा कि कितने लोग राजद्रोह के आरोप में जेल में हैं. तब वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 13 हजार लोग जेल में हैं.
राजद्रोह कानून क्या है?
आपको बता दें कि राजद्रोह कानून का उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में है. इस कानून के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है, जिससे देश और संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 124A की तहत केस दर्ज हो सकता है. इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधि में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज किया जाता है.
कई स्वतंत्रता सेनानियों पर लगा राजद्रोह
इसके बाद साल 1897 में महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ भी इस कानून का इस्तेमाल किया गया था. इसके अलावा आजादी के कई सेनानियों पर राजद्रोह के आरोप लगे और यह कानून थोपा गया. अंग्रेजी हुकूमत ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ भी इस कानून का इस्तेमाल किया था.
अंग्रेजों के जमाने में बना था कानून
इस कानून का लंबे वक्त से देश में विरोध हो रहा है. विरोध करने वाले लोग तर्क देते हैं कि ये कानून अंग्रेजों के जमाने में बना है. ये बात बिल्कुल ठीक भी है. ब्रिटिश शासन में ही साल 1870 में ये कानून बनाया गया था. तब इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने और विरोध करने वाले लोगों पर किया जाता था. इस कानून के तहत कई लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई थी. देश में पहली बार साल 1891 में बंगाल के एक पत्रकार जोगेंद्र चंद्र बोस पर राजद्रोह लगाया गया था. वो ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों और बाल विवाह के खिलाफ बनाए गए कानून का विरोध कर रहे थे.