कश्मीरी पंडितों के ऊपर बनी मूवी जब से रिलीज़ हुई तब से कश्मीरी पंडितो के लिए आवाज़ दोबारा उठने लगी है लेकिन साथ ही अब सुनने को मिल रहा है की दोबारा हालात 1990 जैसे होते जा रहे है इसी को लेकर कश्मीरी पंडित संगठनों का कहना है कि घाटी में 1990 जैसी स्थिति वापस आ रही है।
उन्होंने कहा कि प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है। जम्मू-कश्मीर पीस फोरम और कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) ने पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहने वाले धमकी भरे पत्रों पर चिंता जताई।जम्मू-कश्मीर पीस फोरम के अध्यक्ष सतीश महलदार ने कहा, “पिछले दो दिनों से एक बार फिर कश्मीरी पंडितों को विशेष रूप से लश्कर-ए-इस्लाम द्वारा धमकी भरा पत्र जारी किया गया है, जो सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है। हम अपने घरों में भयभीत हैं और डर के माहौल में सांस ले रहे हैं। जम्मू, श्रीनगर और दिल्ली में सभी अधिकारियों और रिश्तेदारों से हम खुद को बचाने की गुहार लगाते हैं।”
महलदार ने कहा कि मैं मुफ्ती, उलेमा, मौलवी और घाटी के अन्य लोगों से अपील करता हूं कि वे आगे आएं और बहुलवादी समाज को बचाएं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि बहुलवाद हमारी विरासत है। उन्होंने कुलगाम जिले के एक स्थानीय राजपूत सतीश सिंह की हालिया हत्या का भी जिक्र किया, जिसकी अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। उन्होंने कहा कि हत्या से कश्मीर में रहने वाले पूरे अल्पसंख्यक समुदाय में खलबली मच गई।
तो वही आपको बता दे की जब से जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किया है तब से ही कश्मीर में मजदूरों, ड्राइवरों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों की रुक-रुक कर हत्याएं होती है जो सबके सामने है आए दिन इसकी खबर आती रहती है।
हाल ही में कुछ वक़्त से हमलों में दक्षिण कश्मीर के कई हिस्सों में लगभग सात गैर-स्थानीय मजदूरों को गोली मार दी गई और उन्हें घायल कर दिया गया। जैसा मेने शुरू बताया की जब से बॉलीवुड फिल्म कश्मीर फाइल्स आई है तबसे हालात ज्यादा खराब हो गए है और इस मूवी ने कश्मीरी पंडितों के प्रवास के मुद्दे पर अलग ही बहस छेड़ दी है साथ ही इस मूवी के आने से भाई चारे में भी एक खटास पैदा हो गई है यानी घाटी में साफ़ खटास देखने को मिल रही है.