संगीत की दुनिया में स्वर कोकिला लता मंगेशकर के सफ़र का अंजाम भले ही कामयाबी की बुलंदियों को छूने पर हुआ हो लेकिन उनके सफर का आगाज़ संघर्ष, तिरस्कार और तकलीफों से भरा रहा है। बचपन में ही पिता के गुज़र जाने के बाद लता को छोटे मोटे रोल में अभिनय कर परिवार के लिए पैसा कमाना पड़ रहा था. लेकिन लता को मेक-अप, एक्टिंग ये सब बिल्कुल पसंद नहीं थी. उन्हें तो बस गायिका बनना था.
लता को संगीत अपने परिवार से विरासत में मिला था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर ख़ुद भी गाते थे और ड्रामा कंपनी चलाते थे. साथ ही कई छात्रों को संगीत की शिक्षा भी देते थे. पहली दफ़ा उन्होंने अपने पिता के साथ स्टेज पर परफॉर्मेंस दिया जब वो सिर्फ़ 9 साल की थी और उन्होंने राग खंबावती गाया था.
हालांकि लता के पिता नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मों वगैरह में गाना गाए लेकिन 1942 में अपने एक दोस्त की गुज़ारिश पर पंडित दीनानाथ मंगेशकर तैयार हो गए और लता ने मार्च 1942 में एक मराठी फिल्म में गाना गाया. लेकिन किस्मत का खेल देखिये कि उनका ये गाना रिकॉर्ड तो हुआ… पर फिल्म नहीं बनी। और एक महीने बाद ही लता के पिता भी गुज़र गए.
उस समय परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी लता पर आ गई और उन्हें सहारा मिला निर्देशक मास्टर विनायक का जो अभिनेत्री नंदा के पिता थे. मास्टर विनायक ने लता को फिल्मो में बतौर एक्टर काम किया और उस्ताद अमान अली खान की शागिर्द भी दिखाई जिनसे उन्होंने संगीत सीखा और उन्हें मराठी फिल्म में गाने का मौका मिला और यहीं से आगे के रास्ते उनके लिए खुलते चले गए।
इसी दौरान उनकी ज़िंदगी में आए संगीत निर्देशक उस्ताद ग़ुलाम हैदर. उन्होंने लता की आवाज़ सुनी तो उन्हें लेकर निर्देशकों के पास गए. लता की उम्र बमुश्किल 19 साल की थी और उनकी पतली आवाज़ नापसंद कर दी गई. लेकिन ग़ुलाम हैदर अपनी बात पर अड़े रहे और फिल्म मजबूर में लता से मुनव्वर सुल्ताना के लिए प्लेबैक करवाया.
लता बताती हैं कि ग़ुलाम हैदर ने उनसे कहा था कि एक दिन तुम बहुत बड़ी कलाकार बनोगी और जो लोग तुम्हें नकार रहे हैं, वही लोग तुम्हारे पीछे भागेंगे.
ये अजीब इत्तेफ़ाक है कि नूरजहाँ और ग़ुलाम हैदर दोनों बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए पर लता के लिए उनकी कही बात सच हो गई. फ़िल्म मजबूर में लता का गाना सुनने के बाद लता को कमाल अमरोही की फ़िल्म महल मिली और उन्होंने आएगा आने वाला गाया. इसके बाद लता को कभी फ़िल्मों की कमी नहीं हुई.
इन्ही संघर्ष पूर्ण दिनों के दौरान का एक मज़ेदार किस्सा लता मंगेशकर ने कुछ साल पहले अपने एक इंटरव्यू में यूँ सुनाया था, “40 के दशक में जब मैंने फिल्मों में गाना शुरू ही किया था. तब मैं अपने घर से लोकल पकड़कर मलाड जाती थी और वहां से उतरकर स्टूडियो पैदल जाती. रास्ते में किशोर दा भी मिलते. लेकिन मैं उनको और वो मुझे नहीं पहचानते थे. किशोर दा मेरी तरफ देखते रहते. कभी हंसते. कभी अपने हाथ में पकड़ी छड़ी घुमाते रहते. मुझे उनकी हरकतें अजीब सी लगतीं. मैं उस वक़्त खेमचंद प्रकाश की एक फिल्म में गाना गा रही थी. एक दिन किशोर दा भी मेरे पीछे-पीछे स्टूडियो पहुंच गए. मैंने खेमचंद जी से शिकायत कर दी कि ये लड़का मेरा पीछा करता रहता है. मुझे देखकर हंसता है. तब उन्होंने कहा कि अरे, ये तो अपने अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर है. फिर उन्होंने मेरी और किशोर दा की मुलाकात करवाई. और हमने उस फिल्म में साथ में पहली बार गाना गाया.”
बाद के सालों में लता ने सारे बड़े संगीतकारों और किशोर, रफी, मुकेश, हेमंत कुमार जैसे गायकों के साथ गाने गए. बहुत कम उम्र में अपने दम पर लता ने इंडस्ट्री में अपना मकाम बनाया. 2013 में भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के 100 साल पूरे होने पर अपने योगदान को लेकर खुद लता जी ने ही कहा था “अगर फ़िल्म उद्योग के 100 साल है तो इसमें 71 साल मेरे भी हैं.”
ब्यूरो रिपोर्ट स्काई न्यूज़ ग्लोबल